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श्री भगवन्त गणपति गोयलीय
आपका वास्तविक नाम श्री भगवानदास है, आपके पिताका नाम श्री गणपतिलाल था। कविताका कल्पवृक्ष आपके कुटुम्दमें सदा ही फूला फला है। आपके पितामह श्री भूरेलालजी मोदी आशुकवि थे।
भगवन्तजी बहुपाठी, विचारशील और प्रतिभावान व्यक्ति हैं। हिन्दी-हिन्दुस्तानीके अतिरिक्त प्रापको बंगला, गुजराती और मराठीके साहित्यका भी अच्छा ज्ञान है। • आपकी गद्य-पद्यमय प्राथमिक रचनाएं प्रायः २५-३० वर्ष पहले 'विद्यार्थी' और 'भारतजीवन' नामक पत्रोंमें प्रकाशित हुई थीं। आपकी कविताओंको उस समय भी बड़ी रुचिसे पढ़ा जाता था। अनेक कवियोंको
आपकी रचनामोंतेस्फूति मिली और पापके विचारोंसे समाजमें जाग्रति हुई। __ पाप 'जातिप्रबोधक', 'धर्म-दिवाकर' और 'महाकोशल-कांग्रेस-बुलैटिन' के वर्षों तक सम्पादक रहे हैं। आपके लेख, कविताएँ और कहानियाँ भारतके प्रसिद्ध-प्रसिद्ध पत्रोंमें छपती रही हैं। 'जाति-प्रबोधक में लिखी हुई श्रापकी कहानियोंको हिन्दुस्तान-भरमें देशी पत्रोंने उद्धृत किया और सुधारक-संस्थाओंने अनुवादित कर लाखोंको संख्यामें बँटवाया। आपकी कहानियोंका संग्रह हिन्दीमें भी छपा था।
भगवन्तजी कर्मठ देश-सेवक है। आप रायपुर सेन्ट्रल-जेलकी काली कोठरियोंमें महीनों रहे और वहाँके "उच्च पदाधिकारियोंके प्रादेशपर आपको भयंकर मार मारी गई जिसकी आवाज नागपुर कौन्सिलसे टकराई।" ___ आपकी कवितानोंमें सुकुमार भावना और कोमल अनुभूतिके दर्शन होते हैं। हृदयात भावको आप चुने हुए सरस शब्दोंमें व्यक्त करके पाठकको हृत्तन्त्रीको झनझना देते हैं।
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