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सन्तुष्टि शान्ति सच्ची होती है ऐसी जिससे
ऐहिक दुवा पिपासा रहती है फिर न जिसमे , वह है प्रसाद प्रभुका, पुस्तक स्वरूप, उसको
सुख चाहते सभी हैं, चखने दो चाहे जिसको ।६ यूरुप अमेरिकादिक सारे ही देशवाल
अधिकारि इसके सव हैं, मानव सफ़ेद-काले; अतएव कर सकें वे उपभोग जिस तरहसे ,
यह वाँट दीजिये उन सब हीको इस तरहसे ।७
यह धर्मरत्न, धनिको ! भगवानकी अमानत ,
हो सावधान सुन लो, करना नहीं खयानत ; दे दो प्रसन्न मनसे यह वक्त आ गया है,
इस ओर सव जगत्का अब ध्यान लग रहा है ।
कर्तव्यका समय है, निश्चिन्त हो न बैठो,
थोड़ी वड़ाइयोंमें मदमत्त हो न ऐंठो ; 'सद्धर्मका संदेशा प्रत्येक नारी 'नरमें
सर्वस्व भी लगा कर फैला दो विश्व-भरमें ।