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सद्धर्म-सन्देश
मन्दाकिनी व्याकी जिसने यहां बहाई ,
हिंसा, कोरताकी कीचड़ भी वो बढ़ाई , समता-मुनित्रताका ऐसा अमृत पिलाया ,
पादि रोग भागे, मदका पता न पाया ।।
पादि राग
उस ही महान् प्रभुके तुम हो सभी उपासक ,
उन वीर वीर-जिनके सद्धर्मके मुवारक , अतएव तुम भी वैसे बननेका ध्यान रक्सो,
आदर्श भी उमीदा, आन्टॉक आगे रक्सो ।२
संकीर्णता हटायो, मनको बड़ा बनायो,
निज कार्यक्षेत्रकी अब नीमाको कुछ बड़ानो , सब हीको अपना समझो, नको सुन्नी बना दो,
औरोंक हेतु अपने प्रिय प्राण भी लगा दो।३
ऊँचा, ज्वार, पावन, सुन्न-गान्तिपूर्ण, प्यारा
यह वर्म-वृन सबका, निजका नहीं तुम्हारा ; रोको न तुम किसीको, छायामें बैठने दो,
कुल-जाति कोई भी हो, सन्ताप मेटने दो ।४
जो बाहते हो अपना कल्याण, मित्र करना ,
जगदेक-वन्य जिनका पूजन पवित्र करना; दिल बोल करके करने दो चाहे कोई भी हो,
फलते हैं भाव सबके, कुल-जाति कोई नी हो ।५