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नई शैली दी और कल्पनाको नये पंख प्रदान किये । उन्होंने साहित्यका भी निर्माण किया है और साहित्यिकोंका भी !
उनकी दो-एक कविताएँ -- एक 'सद्धर्म-सन्देश' और दूसरी 'मेरे पिताकी परलोक-यात्रापर' का अंश यहाँ दी जाती हैं । अन्तकी रचनाके विषयमें 'प्रेमी' जीने लिखा है :--
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"यह मैंने सन् १६०६ में अपने पिताको मृत्युके समय लिखी थी । उतनी अच्छी तो नहीं है, परन्तु मैंने रोते-रोते लिखी थी, इसलिए उसमें मेरी अन्तर्वेदना बहुत-कुछ व्यक्त हुई है ।"
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जो भावुक कवि हृदय अपने पिताको मृत्युपर श्रप्रतिहत वेगसे फूट पड़ा था और जिसके सुस्रोंके निर्भरमें कविता प्रवाहित हुई थी वह श्राज जीवनकी संध्या में अपने जवान एकलौते बेटेको खोकर क्या अनुभव कर रहा है --- इसको सोचते ही कल्पना काँप उठती है, बुद्धि कुंठित हो जाती है ।
साहित्य - जगत् की समवेदनाके धांसू, 'प्रेमी' जीके दुखको कुछ अंशोंमें बँटा सकें - यही कामना है ।
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