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शायद तुमने समझ लिया है, अव हम मारे जायेंगे इस दुर्बल श्री दीन दशामें भी नहि रहने पायेंगे :
छाया जिससे शोक हृदयमे इस जगसे उठ जानेका, इसीलिए है यत्न तुम्हारा यह सव प्राण बचानेका |४|
पर ऐसे क्या बच सकते हो, सोचो तो, है ध्यान कहाँ ? तुम हो निवल, मवल यह घातक, निष्ठुर, करुणा-हीन महा :
स्वार्थ साधुता फैल रही है न्याय तुम्हारे लिए नही, रक्षक भक्षक हुए, कहो फिर कौन सुने फ़रियाद कहीं |५|
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इससे बेहतर खुशी-खुशी तुम बध्य-भूमिको जा करके वधिक दुरीके नीचे रख दो निज सिर स्वयं झुका करके ;
ग्राह भरो उस दम यह कहकर " हो कोई अवतार नया, महावीर के सदृश जगतमें फैलावे
सर्वत्र
दया ! " | ६|