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रहे भावना ऐसी. मेरी सरल सत्य व्यवहार करूँ, बने जहाँ तक इस जीवनमें
औरोंका उपकार करूं 1४1 मैत्री-भाव जगतमें मेरा सब जीवोंसे नित्य रहे , दीन-दुखी जीवोंपर मेरे उरसे करुणा - स्रोत वहे ;
दुर्जन क्रूर कुमार्गरतोंपर क्षोभ नहीं मुझको आवे , साम्यभाव रक्तूं मैं उनपर
ऐसी परिणति हो जावे ।। गुणी जनोंको देख हृदयमें मेरे प्रेम उमड़ आवे , वने जहाँ तक उनकी सेवा करके यह मन सुख पावे ;
होऊँ नहीं कृतघ्न कभी मैं , , द्रोह न मेरे उर आवे , गुण - ग्रहणका भाव रहे नित दृष्टि न दोषोंपर जावे ।।
कोई बुरा कहे या अच्छा, लक्ष्मी प्राके या जावे , लाखों वर्षों तक जीऊँ या मृत्यु आज ही आ जावे।
अथवा कोई कैसा ही भय या लालच देने आवे , तो भी न्याय-मार्गसे मेरा कभी न पद डिगने पावे ७१