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सेरी
जिसने राग-द्वेप-कामादिक जीते, सब जग जानीलि सव जीवोंको मोक्षमार्गका
वुद्ध, वीर, जिन, हरि, हर, या उसको स्वाधीन भक्ति भावसे प्रेरित हो चित्त उसीमें लीन
उपदेश दिया IFT
कहो
यह
रहो | १|
"
विषयोंकी श्राशा नहि जिनके, साम्य-भाव-धन रखते है, निज-परके हित-साधनमें जो निश-दिन तत्पर रहते हैं ;
स्वार्थ - त्यागकी कठिन तपस्या विना खेद जो करते हैं, ऐसे ज्ञानी साधु जगतके दुख- समूहको हरते हैं |२|
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रहे सदा सत्संग उन्हींका, ध्यान उन्हींका नित्य रहे, उन ही जैसी चर्यामें यह चित्त सदा अनुरक्त रहे ;
नहीं सताऊँ किसी जीवको
झूठ कभी नहिं कहा करूँ, परधन - वनितापर न लुभाऊँ सन्तोपामृत पिया
करूँ |३|
अहंकारका भाव न रक्खूँ, नहीं किसीपर क्रोध करूँ, देख दूसरोंकी बढ़तीको कभी न ईर्षा भाव धरूँ ;