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सब भक्त तो चढ़ाते,
जल-गन्य-पुष्प-अक्षत; नैवेद्य दीप पावन,
फल धूप कर्म-दाहन । में शीग हूँ नवाती,
उर भक्ति-भाव मेरे; अव छोड़के जाऊँ कहाँ, ,
चरणारविन्द तेरे। जन लौटते नहीं है,
निष्फल निरांग होकर; 'मैना' पड़ी चरणमें,
आँसूकी माल लेकर। साथी सगा न कोई,
प्रियतम 'विमल' सिवारे ; अव छोड़के जाऊँ कहाँ,
चरणारविन्द तेरे।
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