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डॉ० शंकरलाल, इन्दौर
डा० शंकरलालजी काला, डी० श्राई० एम०, इन्दौर, मध्यभारतके उदीयमान हिन्दी कवि और लेखक हैं । आपकी रचनाएं 'जीवनप्रभा', 'जैन मित्र' श्रीर 'जैनबन्धु' आदि पत्रों में प्रकाशित होती रही हैं। वर्तमानमेंआप 'आत्मबोध' संस्कृत ग्रन्थका हिन्दी पद्यानुवाद कर रहे हैं । आप बालकों के लिए श्रोजमयी सुन्दर रचनाएँ भी करते हैं । उदाहरण दिया जा रहा है ।
आज़ादी
भोले भाले वालक, आश्रो, मानस मन्दिरके आधार ; जीवनके तुम ही हो साथी, तुम हो देव, अरे, साकार । मांस पिडके तुम हो पुतले, राष्ट्र-सारिणीके पतवार ; तुम हीको अपने जीवनमें इसका करना है उद्धार । सेनानी बन समर सैन्यमें तुमको ही लड़ना होगा ; गाँधीकी ग्रांधी में तुमको लघु तृण-सा उड़ना होगा । समय नहीं आता है, वालक, समय नहीं देखा जाता ; जीने-मरनेके प्रश्नोंको कोन उपेक्षित बतलाता । आओ, आओ, वालक वीरो, आज़ादीका जंग लड़ें ; कहीं रुकें ना कहीं भगें हम विद्युत्के बल आज बढ़ें। जन्मसिद्ध आज़ादी जगकी इसके बल सब देश खड़े ; प्राज उसी आज़ादीके हित वोलो अब हम क्यों न लड़ें ? वाल वन्धुओ, नहीं हमारा देश रहेगा फिर परतन्त्र ; जगती के कण-कणमें फूंकें आज़ादी जीवनका मन्त्र । झंडा ऊँचा करो देशका आज़ादी अव पानेको ; वीर भूमिके बालक, वीरो, जीवनमें सुख लानेको !
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