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मानवके प्रति
अरे मानव, तू श्रव तो देख पलकसे ढपे युगल-पट खोल
हर्निग वीत रहा है श्राज समय तेरा सबसे अनमोल ।
समझ जीवनमें इसका मूल्य यही जीवनका जाग्रत् प्राण इसे जो खोते हैं निष्काम वने फिरते है वे म्रियमाण ।
समयकी मधुर साधना साव प्राण अपनेपर बाजी खेल उतर पड़ रण- ग्रांगनके बीच देव-हित अपना देह ढकेल ।
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खिलाड़ी करना होगा खेल छके वैरी-दल सहसा देख वने प्यारा भारत स्वाधीन नहीं हो पर वन्वनकी रेख ।
मिटा दे ग्रन्थकार अज्ञान करा दे सबको सच्चा ज्ञान जुटा जीनेके सावन नित्य कला - कोलका ताना
तान ।
मिटा रोटीका व्यापक प्रश्न वना भारतको गिखराख्ढ़ नहीं तो निश्चित ही यह जान एक दिन देश जायगा वूड़ ।
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