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सफल जीवन
• आँख वह होती न बिलकुल
जो न पर दुख देख रोती, काम उसका क्या हुआ जो स्वयं सुखमें तृप्त होती ?
लाभ क्या है उन करोंसे जो न गिरतेको उठायें ? या कि वन दानी जगत्में कीर्ति-यश अपना बढ़ाये।
है श्रवण वे धन्य जो
आवाज़ सुनते कातरोंकी , वे गुहा हैं जो कि सुनते रागिनी मंजुल स्वरोंकी।
वह हृदय है नामका वस जो न भावोंसे भरा हो, देशका अनुराग जिसमें पूर्णतः लहरा रहा हो।
व्यर्थ है वह जन्म लेना जो जिये अपने लिये ही, धन्य हैं वह मृत हुए जो सिर्फ औरोंके लिये ही।
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