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- नित्य होते जाते कृश-काय बताओ, हे शशि, है क्या वात, कौन-सी दुश्चिन्तामें ग्राह बनाते हो अपना कृश गात ?
पद्म- कलिकाएँ मुरझाकर 'प्रफुल्लित होते थे, राकेश, इसीसे प्रतिद्वन्द्वी तेरा
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वना है क्या वह चण्ड दिने ॥
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विभाजित कर रक्खा क्यों व्ययं तारिकाओं में अपना सार, इसीसे काला है क्या हृदय जिसे लखता सारा संसार ?
इसीसे दुर्बल होकर, इन्दु एक दिन खोते निज सम्मान, सिखाते दुनियाको यह पाठ मानका होता यों अवसान ।
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