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दानवता हत्याखोरोंकी मानवताके पद पकड़ेगी, जो आज झुकाती है ताक़त वह झुक सिर पगमें रख देगी। नहिं होगा कोई ग़रीव और सरमायादार नहीं होंगे, साम्राज्य नहीं, फ़ासिम, देश द्रोही गद्दार नहीं होंगे। नहिं आएंगी नयनों समक्ष पैशाचिकताकी तस्वीरें, हो खण्ड खण्ड, कड़कड़ा उठे दुर्दान्त हमारी जंजीरें। फिर रह न सकेंगे क्रूर कहीं अवनीपर नवयुग आवेगा , कोने, कोनेमें मजदूरोंका झण्डा जव फहरावेगा।
सपना
(इंगलैंडके चुनाव पर)
आज देखा एक सपना। चिर युगोसे चक्षु जिसको सजल हो हो ढूंढ़ते थे, देखता हूँ आज, जिसकी यादसे अरि घूरते थे। दासताके दुर्ग ढहते भूमि लुण्ठित ताज देखे , जालिमोंकी छातियोंपर गरजते मुहताज देखे । स्वर्ण सिंहासन उलटते धूलिमें रवि रश्मि देखी , विश्वके श्रमजीवियोंकी विजयकी प्रतिमूर्ति देखी। झूमती है निराभूपण क्रान्तिकी मन हरन प्रतिमा , कालिमाको चीर लालीकी वही शत रश्मि आभा ।
तान घूसे कह रहे सवजहाँ अपनी, विश्व अपना ,
आज देखा एक सपना।
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