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जीवनके क्षण-क्षण वीत रहे मोतीकी टूट रहीं लड़ियाँ , इन इने-गिने दो दिनमें ही 'बीती जाती जीवन-घड़ियाँ।
फिर हाथ भला क्या आवेगा सचमुच यदि हालत यही रही , मौका पा करके ही धो लो वहती गंगाकी धार यही ।
प्रोस रजनीके प्रियतम बनकर, ले प्रणय वेदना सपना; आये निशीथके अंचल, अस्तित्व मिटाने अपना । ऊपाकी अरुणा नभसे स्वागत करनेको तेरा; प्रतिविम्बित हो प्रतिक्षणमें, तेरा शृंगार सुनहरा। अथवा स्वर-परियोंके ये, मालाके मोती क्षितिपर ; किसके उरमें परिवेदन, उनकी निर्ममतम कृतिपर । किस हृदयहारके अनुपम, उज्ज्वल ये विखरे मोती;
शृंगार सुरभिमें परिणत, तुमने छोड़ा है रोती ? स्वप्नोंकी अर्ध-निगामें शीतल समीर झकझोरे ; निस्तव्य प्रकृतिके आँसू पुलकित उरके किलकोरे । देदीप्यमान रवि प्राकर, वसुधापर नवल प्रभाएँ; तेरे मृदुतम तव तनसे कई एक निकलती आहे। क्षणभंगुर है जग-मानव, जल-कणकी करुण कहानी ; वैराग्य हृदयमें तेरे, नयनोंमें होगा पानी।
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