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श्री ताराचन्द, 'मकरन्द'
'मकरन्द 'जीकी कविता प्रायः जैन-पत्रोंमें छपती रहती है । इनकी कविताएँ शैलीमें छायावादी ढंगकी होती हैं । जहाँ कविताओंका अभ्यन्तर कुछ स्पष्ट हो जाता है, वहां छायावादी शैली कवि और पाठक दोनोंके लिए बाधक हो उठती है । आशा है प्रगतिकी सीढ़ियोंपर दृढ़तासे पग रखते हुए 'मकरन्द' अभी श्रागे और बढ़ेंगे —— ठीक दिशामें ।
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जीवन - घड़ियाँ
ओ जाग, जाग सोनेवाले
हो गया देख स्वर्णिम प्रभात जीवन-घड़ियाँ क्यों सोनेमें यों बिता रहा जब गई रात ?
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सोते बदहोश तुम्हें मानव हैं बीत चुकी अगणित सदियाँ, क्यों अलसाये तुम पड़े हुए खो रहे आप अपनी निधियाँ ?
मानस-तटपर
यद्यपि तेरे
आते हैं किरणोंके वितान,
फिर भी तू सोता ही रहता आलसकी
चद्दर
तान-तान !
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