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___ जल रहे निखिल पुरजन-परिजन
. विध्वंस - पिण्ड - ज्वालाओंमें। है चीख रही सारी जनता
उन कोटि-कोटि मालाओंमें ।।. लुट गया आज माताओंका
सौभाग्य, हुई सूनी गोदी। मानवने फिर संहार-हेतु
वह एक नई खाई खोदी ॥ नर कहीं तरसते दानेको
शिशु कहीं विलखते मात-हीन । झोंके जाते हैं कहीं वही
स्फोटक - ज्वालानोंमें, कुलीन ॥ है वीर, विषमता यह कैसी
कैसा यह अत्याचार-जाल । क्यों हुआ अचानक ही कैसा
भीषण यह कुटिल कराल काल । आओ, फिर आओ, महावीर,
__यह विषम परिस्थिति सुलझाओ । सत्पथसे भूली जनताको
मङ्गलमय पथ दिखला जाओ ॥
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