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पं० राजकुमार, 'साहित्याचार्य्य'
पं० राजकुमारजी जैन समाजके श्रतीव होनहार और सुयोग्य विद्वान् हैं । श्राप संस्कृत साहित्यके तो प्राचार्य हैं हो, हिन्दीके भी सुलेखक श्री कुशल कवि हैं । श्रापने 'पाश्र्वाभ्युदय' नामक संस्कृत काव्यका हिन्दी कविता सुन्दर अनुवाद किया है । ये खंड-काव्य तथा श्रतुकान्त afaar लिखने में विशेष रूपसे सफल हुए हैं ।
आह्वान
जब जीवन - भाग्याकाश घिरा था
कलुष-धन- मालासे ।
कुटिल धू-धू कर जले जा रहे थे नर-पशु जलती ऋतु - ज्वालासे ॥ भू माँका था फट रहा वक्ष,
ग्राकाश सजल नयनाञ्चित था । वह स्नेह, विश्व वन्धुत्व-भाव
जीवनमें कहीं न किञ्चित् था ॥ तव धीर वीर, तुमने ग्राकर
समताका पाठ पढ़ाया था। वसुधापर सुवा-कलित करुणा
का सुन्दर स्रोत बहाया था ॥
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पर वीर, तुम्हारा कर्म-मार्ग हो चुका श्राज विस्मृत विलीन |
कर रहे आजसे फिर मानवमानवताको मलीन ॥ -
मंजुल
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