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श्री वीरेन्द्रकुमार, एम० ए०
HENANLAR TO
हिन्दी साहित्य में श्री वीरेन्द्रकुमार, एम० ए०ने प्रतिभावान् कवि और कलावान् कहानी-लेखकके रूपमें पदार्पण किया है । आपका पहला कहानी-संग्रह 'आत्म-परिचय' के नामसे प्रकाशित हुआ है जिसका हिन्दी - जगत् में समुचित श्रादर हुआ है ।
आपकी कविता कोमल भावना, ऊँची कल्पना और उपादेय भावुकताका दर्शन होता है । आपकी भाषा प्रांजल और कर्ण - मधुर होती है । यहाँ उनकी 'वीर - वन्दना' शीर्षक सुन्दर और सजीव कविताके साथ-साथ अन्य कविताएँ भी दी जा रही हैं ।
वीर-वंदना
लेकर अनंग- मोहन यौवन, ग्रवरोंपर वंकिम धनु ताने ; मनसिजकी पुष्प-धनुष - डोरी, तुम तोड़ चले, ग्रो मस्ताने । नन्दन-काननमें प्रप्तरियाँ वन कमल विछीं तेरे पथमें ; पद-रजकी उनको दे पराग, तू लौट चढ़ा पावक रथमें । वह तीस वर्षका अरुण तरुण, रतिकी शैय्या भी थी प्यासी ; त्रैलोक्य-काम्य रमणीके परिणयको निकले तुम संन्यासी ।
बाला-जोवन, भोली सूरत, भौहोंमें शत्-सन्धान लिये ; चितवनमें देश - कालपर शासन करनेका अभिमान लिये । अघरोंपर वीतराग ममताकी अनासक्त मुस्कान लिये ; उन अवहेलित-सी अलकोंमें शाश्वत यौवनका मान लिये । चिर मोह - रात्रि भवको अभेद्य, भेदन करने चल पड़े वीर ; भीषण जड़-चेतन युद्धोंमें तुम जूंझ चले जेता सुधीर ।
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