________________
त्रिपुरीकी झांकी
त्रिपुरीके सुन्दर 'प्राङ्गणमे रेवाका कलरव देखा ; विन्ध्याचलके विजन विपिनमें शान्ति-क्रान्तिका युग देखा ।। ग्वण्ड-खण्डम कण-कणमें यग, वीरोंका छाया देखा ; नीले नभमें पूर्व जनोंका, सिंहनाद गुञ्जित देखा। विजलीकी झिलमिल आभाग, वृक्षोंको हँसते देखा ; वीरोके वर अट्टहाससे, गिरि गह्वर मुखरित देखा। गिरि-मालाकी मध्य-वीथिसे लोगोंको आते देखा ; अपने मुकुलित हृन्य-क्षेत्रमें भव्य-भाव भरते देखा। हस्तकलाका सुन्दर चित्रण, भारत-वीरोंको देखा ; महिलाओंके सुन्दर मनमें सेवा-बत जागृत देखा । तरुणाईकी ललित लालिमासे नभको रञ्जित देखा ; प्रवल ओजसे रज कण-कणको उद्भासित होते देखा। बावन गजसे युक्त शुभ्र रथका उत्सव भरते देखा ; लाखों जनताकी जयध्वनिसे गिर मण्डल गुञ्जित देखा। नीले नभमे 'राष्ट्र-पताकाको लहराते भी देखा ; 'झंडा ऊँचा रहे हमारा'का गाना गाते देखा ।। रजनीके नीरव निकेतमें कवियोंका संगम देखा ; कोमल कान्त मधुर कविताओंसे नभको पूरित देखा।
- ११४ -