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कितने ही भाई विलख रहे, कितनी ही वहनें रोती है, कितनी माताएँ प्रतिपल अपने शिशुधनको खोती हैं, जग भूल गया कर्त्तव्य-कर्म, जिससे माताका सुख निधान,
जागो, जागो हे युगप्रधान ! है रणचण्डीका अतुल नृत्य, दिखलाता जगमें विकट खेल, है वन्ध-बन्धुमें प्रेम नही, है नहीं किसीके निकट मेल, कंकाल मात्र अवशेप रहा, सब दूर हुआ बल,सौख्य, दान,
जागो, जागो हे युगप्रधान ! यह काल दैत्य ज्वालाभितप्त, करता आता है ध्वंस आज, यह प्रलय केन्द्र उत्तप्त हुआ, है सजा रहा संहार साज, वन उठो वीर! हे सजल मेघ, कर दो जगका ज्वालावसान,
जागो, जागो हे युगप्रधान ! जगतीमे छाया निविड़क्लान्त, पथ भूल रहे नर सुगम कान्त, दिखता है मानव हृदय क्लान्त, सागर लहराता है अशान्त, लेकर प्रकाशकी एक किरण, करने जगमें आलोक दान,
जागो, जागो हे युगप्रधान !
हैं पुरुप प्रापपुरुषार्थ करें, वर पोज विश्वमें प्राप्त करें, है तरुण, तपी तरुणाईसे, नभमें महान् आलोक धरें, भरकर उरमें सन्देश दिव्य, फैलाने जगमें अतुल ज्ञान,
जागो, जागो हे युगप्रधान !
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