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-श्री पन्नालाल, 'वसन्त'
आप समाजके उद्भट विद्वानों और साहित्य-सेवियोंमें हैंसाहित्याचार्य, न्यायतीर्य और शास्त्री। आपका जन्म सन् १९११ में पारगुंबा (सागर) में हुआ।
अापने संस्कृतके अनेक धार्मिक प्रन्योंको टीकाएं लिखी हैं और संस्कृत गद्य और पद्यमें मौलिक रचनाएं की हैं।
'वसन्त जी रात-दिन साहित्य-सेवामें निरत हैं। विचार आपके वहुत उदार और राष्ट्रवादी हैं। अनेक विषयोंपर आप सफलतासे लेखनी जाते हैं, किन्तु आपकी प्रायः कविताएँ या तो प्रकृतिको लक्ष्य करके लिखी जाती हैं या वह राष्ट्रवादी होती हैं।
जागो, जागो हे युगप्रधान !
जागो-जागो हे युगप्रवान ! है भक्ति निहित सारी तुमनें, तुमही हो जगके नर महान । नितिपर हरियाली छाई है, पर सूख रहे मानव आनन , सरिताएँ वनमें उमड़ रहीं, पर खाली हैं मानस कानन , घनघटा व्योममें उमड़ रही, पर भूपर है ज्वाला वितान ,
. जागो, जागो हे युगप्रवान ! नभसे होती है वम्ब-वृष्टि, नितिपर सरिताएं लहराती, जठरोंमें नरकी ज्वालाएँ, हैं वढ़ी भूखकी हहराती, हैं सुलभ नहीं दाना उनको, आँखोंमें छाया तम महान,
जागो, जागो हे युगप्रवान ! - ११२ -