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हलके समीरणके कोमल झकोरोंके महिमामय क्षणमें देव ! जैसे सुधांशुपर-से मेघ हट जाता है। जैसे दीप-ज्योतिकी कोमल किरण-बालाएँ अन्तहीन तमकी तहोंको चीर देती हैं। वैसे ही, वर्द्धमान, वुद्धदेव, केवली, आत्माके बन्धनोंके अन्तिम प्रावरणको चीर शुद्ध रूप, शुद्ध ज्ञान, शुद्ध शौर्य, शुद्ध वीर्य, एक महा ज्योतिःपुंज, अपनी विराटतामें अणु-अणु विखर गया, निखर गया अखिल विश्व, दीप्त हुआ भामंडल, 'त्रिभुवन हुआ आलोकित, कोटि-कोटि कंठोंके जय-जय महाघोष से गूंज उठे, लोक, काल, भूसे ले नभ तक, नाथ !