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मैं एकाकी पथ-भ्रष्ट हुआ
कुछने चौपथ तक साथ दिया , कुछ अर्द्ध मार्गसे हुए विलग ; कुछ थके, रुके, कुछ कहीं थमे , हो उठे सभीके भारी पग। . । में एक निरन्तर किन्तु वढ़ा ,
था आगे इस टेढ़े पथपर ; पर, हाय, हुमा मुझको भी क्या ,
हो रहे चरण मेरे डगमग ! आगे क्या होगा, गति-अथ ही जव इतना सथक, सकष्ट हुआ?
मैं एकाकी पथ भ्रष्ट हुया ।
पथ - भीषणता, दुर्गमताका , जग आज दिखा मत मुझको भय ; चल पड़ा रुकुंगा अव न कही,
आँधी आये, हो जाय प्रलय । पाँवोंमें काँटे चुभे, लहू , टपके, मुझको चिन्ता न आज ; कर जाऊँगा कालालिंगन , या लीलूंगा ले पूर्ण विजय ।
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