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इतिहास जाता काटति जो उलना यह उत्कृष्ट हुआ;
__ में एकाकी पथ - ऋष्ट हुआ १२॥
में पहुंच पंगा नंजिल तक , तुझको नय है, न हूँ हमाग ; पग-रगपर गिरता उना हूँ, हो रहा लुप्त रवि, शानि-प्रकाय ।
फिर पाँव पकड़कर खींच रहे, पोछे मरे सहगानी ही ; आवद्ध विविध बन्धन-वारा ,
कर रहे, हाय, है नबनाम । ने, नेरी जीवन-गायाका , तो बन्द प्राधिरी पृष्ट हुना।
में एकाकी पय - भ्रष्ट हुआ ।
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