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गम्भीरतासे संवेदन किया है और इसी संवेदनने वेगवान् होकर आपकी कविताके प्रवाहको अनेक धाराओंमें प्रस्फुटित किया है।
श्रापको जन्मभूमि ललितपुर (बुन्देलखण्ट) है। ये कांग्रेसी कार्यकर्ता हैं और सत्याग्रह-नान्दोलनमें दो बार जेल-यात्रा कर चुके हैं।
प्रापसे समाज तथा साहित्यको अनेक प्राशाएं हैं। इनके निम्नलिखित अप्रकाशित कविता-संग्रह हैं:
१. अङ्गार २. आधी रात ३. पाफिस्तान (एक खण्ड काव्य)
आग लिखना जानता हूं!
कोकिलाको मघर क-कू, सुन रहा कोई निझर-झर, म्वप्नमें लग्यकर मुमुखिको भर रहा कोई विरह-स्वर । किन्तु मैं तो भैरवी अपनी निराली तानता हूँ।
आग लिखना जानता हूँ ! ~ ८९ -