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श्री हुकुमचन्द्र खारिया 'तन्मय'
'तन्मय' जी कविताके क्षेत्रम १९४०, ४१ से ही प्रकाश्य रूपमें थाए हैं । आपकी कविताएँ बड़ी श्रोजपूर्ण तथा विद्रोहपूर्ण होती हैं । कविता-पाठ करते समय श्राप श्रोताओंको मन्त्र-मुग्ध कर देते हैं । उनकी श्रात्माएँ फड़क उठती हैं ।
आप अपने परिचयमें लिखते हैं-- 'राष्ट्रकी गुलामीको बात जब कभी में सोचता हूँ तो तिलमिला जाता हूँ । पवित्र शस्य श्यामला और सुजला- सफला घरतीके निवासियोंको जब भूखों मरता देखता हूँ तो लेखनी विद्रोहके लिए मचल उठती है और तभी वरबस ही मेरे 'कवि' को घोषित करना पड़ता है
' भाग लिखना जानता हूँ ।'
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एक स्थानपर श्रापके कवित्वने शारदासे प्रार्थना की है'युग - कलाकार युग - मानवका पथ-दर्शन मुझको करने दो, सूनी वलि - वेदीको श्रम्वे ! अगणित गोशोंसे भरने - दो, पाताल स्वर्गसे मिल जाए हो धरा-गगनका प्रालिंगन, विद्रोह खेल खुलकर नाचे, विप्लवको आज मचलने दोइस जगको, माँ, तुम एक बार हो तो जाने दो क्षार-क्षार ।'
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'तन्मय' जी प्रलय - गीत लिखनेमें खूब सफल हुए हैं, किन्तु प्रलय-गीतों के साथ आपने कुछ प्रणय गीत भी लिखे हैं ।
वस्तुतः 'तन्मय' जीके कवित्वने कोरी कल्पनाके पंख लगाकर अनन्तके श्राकाशमें उड़ान नहीं भरी है, बल्कि दृश्य जगत् के अन्तर्वाहका उसने
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