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कोई क्या जाने, कोई क्या समझे ? '
प्रेमी
प्रीतिमगे
मनको
कोई क्या जाने, कोई क्या समझे !
कविके पागलपनको
कोई क्या जाने, कोई क्या समझे !
भावुक
उन्मत्त हृदयकी थिरकनको,
नत कुलके
नयनोक
तेरे
अवर प्रकम्पनको
निमन्त्रणको
मूक कोई क्या जाने, कोई क्या समझे !
अति कुटिल गरलमें बुझी हुई
अति सरल, सुवाने सींची सी मद-भरी अनोखी चितवनको
कोई क्या जाने, कोई क्या समझे ! -रे कीट, ज्योतिका इक चुम्बन,
उसपर प्राणोंकी बाजी ? आत्म-विसर्जनको
कोई क्या जाने, कोई क्या समझे !
श्रांत-मिचौनीको
-सुख-दुखकी
-इस
नक्की
स्वप्न-मरीले
"
SO
होनी-अनहोनीको
जीवनको
कोई क्या जाने, कोई क्या समझे !