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श्री लक्ष्मीचन्द्र जैन, एम० ए०
आप अंग्रेजी और संस्कृत, दोनों विषयोंके, एम० ए० हैं। इन्हें साहित्यके प्रायः सभी युगों और क्षेत्रोंसे परिचय है और संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी उर्दू और बंगला साहित्यके वालोचनात्मक अध्ययनमें विशेष रुचि है। ___ इनके हिन्दी और इंग्लिगके गद्यलेख-भाषा, भाव और शैलीमेंबहुत सुन्दर होते हैं। श्राप जव देहली और लाहौरमें थे तो ऑल इन्डिया रेडियोसे आपके भाषण, साहित्यिक पालोचनाएँ और कविताएँ प्रायः ब्रोडकास्ट होती रहती थीं।
अापके कवि-जीवनका परिचय श्री कल्याणकुमार 'शशि'के शब्दोंमें इस प्रकार है___"श्राप समाजके ही नहीं, वरन् देशके उभरते हुए उज्ज्वल नक्षत्र हैं। आप बहुत ही सरल स्वभावी और मौन प्रकृतिके जीव हैं। और पत्रोंमें नहींके बरावर लिखते हैं। इसीलिए सुदूर वनस्थलीके सुकोमल नीड़ोंमें गुंजरित होती हुई, हृदयको नचा-नचा देनेवाली कोयलकी कूक हमें सुननेको नहीं मिलती। आप अपने विषयके चित्रमें प्रतिभाकी बड़ी वारीक कूचीसे रंग भरते हैं। श्रापकी कवितामें 'पन्त' जैसी कोमलताका दिग्दर्शन मिलता है। सम्भवतः किसी-किसी कविताम तो ऐसी अनुभूति होने लगती है कि मानो इन्होंने प्रकृतिको प्रात्मासे साक्षात्कार करके ही उसका वर्णन किया हो।"
पहले श्राप लाहोरमें भारत इन्श्योरेंस कम्पनीके पब्लिसिटी-ऑफिसर और अंग्रेजी पत्र 'भारत मैग्जीन के सम्पादक थे। आजकल आप डालमियानगरमें दानवीर साहू शान्तिप्रसादजीके सक्रेटरी और डालमिया जैन ट्रस्टके मन्त्रीके पदपर हैं। अापकी धर्मपत्नी श्री कुन्यकुमारी जैन वी० ए०, (ऑनर्स) वी० टी० सुसंस्कृत और प्रतिभासम्पन्न प्रादर्श महिला हैं।
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