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रास तथा सज्माय-विभाग
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सदविचार को मन में धार, जाऊं सिद्धाचल गिरनार । सम्मेत शिखर आबू तारंग, धन्य घड़ी कब भेटू उमंग ॥२१॥ श्रावक तणी क्रिया है एह, इसमें होता है भव छेह । अष्ट कर्म दल पातला, पाप तणा छूटे आमला ॥२२॥ बहुरि लीजिये अमर विमान, अनुक्रमे पावे शिवपुर ठाम । कहे जिन हर्प घणो ससनेह, करणी दुःख हरणी है येह ॥२३॥
मन भमरा वैराग्य सज्माय भूलो मन भमरा तूं क्यों भम्यो, भमियो दिवस ने रात । मायारो , बांध्यो प्राणियो, भमे परिमल जात ॥ भूलो० १॥ कुम्भ काचो रे काया कारमी, तेहनां करो रे जतन्न । विणसतां वार लागे नहीं, निर्मल राखो रे मन्न ॥ भूलो० २ ॥ केना छोरू केना वाछरू, केना माय ने बाप । अन्ते । जाऊं छे एकलं, साथे पुण्य ने पाप ॥ भूलो० ३ ॥ आशा तो डूंगर जेवडी, मरवू पगला रे हेठ । धन संची संची काइ करो, करो दैवनी वेठ ॥ भूलो.
॥ धन्धो करि धन मेलव्यं, लाखां ऊपर कोड । मरणनी वेला मानवी, लियो कन्दोरो तोड ॥ भूलो० ५॥ मूरख कहे धन माहरूं, धोखे धान न खाय । वस्त्र बिना जइ पोढवं , लखपति लाकडा मांय ॥ भूलो० ६ ॥ भवसागर रे दुःख जल भर यो, तरवो छे रे तेह । विचमां भय सबलो थयो, कर्म वायरनो मेह ॥ भूलो० ७ ॥ लखपति छत्रपति सभि गया, गया लाखों के लाख । गर्व करी गोखे बेसता, सर्व थया वली राख ॥ भूलो. ॥८॥ धमण धखन्ती रे रहि गई, बुझ गई लाल अंगार । एरण को ठवको परयो, ऊठ चल्यो रे लोहार ॥ भूलो० ९ ॥ ऊबट मारग चालतां, जावू पेले रे पार । आगल हाट न वाणियो, संवल ले जो रे सार ॥ भूलो० १०॥ परदेशी परदेश में, कुण सूं करो रे सनेह । आया कागल ऊठ चल्या, न गणे आंधी न मेह ॥ भूलो० ११ ॥ केई चाल्यो रे केई चालशे, कई चालणहार । कई चाल्या रे बूढा वापढा. जाये नरक मझार ॥ भूलो०१२॥ ज घर नौवत वाजती, गाता छत्तीश राग । खंडर थइ खाली पड़यां. बैठण लाग्या छे काग ॥ भूलो० १३ ॥ भमरो आंव्यो रे कमलमां. लेबा कमलनं ।
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