________________
b x x bkt b b b c t t bxx x t
६४८
जैन - रत्नसार
V2447 VIJU vit
22
wwwwww.vu
सज्झाय, जिससे भव निस्तारा पाय || ४ || चौदह नियम चितवन करो, दया पाली जीवन सुख भरो । मन्दिर जा जुहारो देव, द्रव्य भाव से करना सेव ॥ ५ ॥ पूजा करते लाभ अपार, प्रभु बड़े मोक्ष दातार । जो उत्थापे जिनवर देव, ताहि न शब्द कान में लेव ||६|| उपाश्रये गुरु वन्दो जाय, 'सुनो बखान सदा चित लाय । निर्दृषण कर शुद्ध अहार, साधुन को दीजे सुविचार ||७|| स्वामीवत्सल कीजे घना, हेत बड़ा है स्वामी नता । दुखिया हीन दीन को देख, करिये उनपर दया विशेष ||८|| शक्ति देख निज देना दान, बड़न सो नहीं कीजे मान । लेहु प्रतिज्ञा गुरु के पास, धर्म अवज्ञा करहु न वास ||९|| और करो तुम शुद्ध व्यापार, कमती ज्यादे का परिहार - | मत भरना तुम झूठी साख, झूठे जन से बात न भाख ॥१०॥ अनन्तकाय कहे बत्तीस, अभक्ष बाईस विश्वा वीस । ये भक्षण मत करना तीम, कच्चे खट्टे फल मत जीम ॥११॥ रात्रि भोजन का बहु दोष, समझ गख दिल में संतोष । सज्जी साबुन लोह और गुली, मधु गूंद मत बेचो बली ॥१२॥ और रंगाई कर्म न करो, दूषण उनमें अति सांभरो । पानी छानो दो दो बार, अनछाने में दोष अपार ||१३|| यत्न करो जीवाणी तणा, यत् पुण्य बंधे अति घना । छाणा इन्धन भट्ठी जोय, वावरिये जिम पाप न होय ॥ १४ ॥ घृत सम वापरना तुम नीर, अनछाने में मत धो चीर । बारह व्रत तुमे सुध पालो, अतिचार उनके सभी टालो ॥१५॥ कहे पंद्रह मिथ्या कर्मा दान, पाप तणी परिहरिये आन । माथे मत ले अनरथ दंड, मेल मत भरजो पिंड ||१६|| समकित दिल में राखो शुद्ध, बोल विचारी भाखिये बुद्ध | पंच तिथि मत कर आरंभ, पालो शील तजो मन दंभ ॥१७॥ तेल तक घृत पय अरु दही, उघाड़ा मत राखो सही । श्रेष्ठ कार्य में खरचो वित्त, पर उपकार करो शुभ चित्त ॥ १८ ॥ दिन प्रतिदिन करो चौविहार, चारों आहार तथा परिहार दिवस के आलोओ पाप, जिससे भागे सब संताप ||१९|| संध्यांयें आवश्यक सांचवे जिनवर चरण सरण भवभवें । चारों सरना कर दृढ़ हो, सागारी अणसण ले सो ||२०||
GKK torby
2012ˇˇˇˇ
atk k k bkkt t