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అtatiotiడండగా వందనం వండడమనదhtathakanthaantiksha
रास तथा सज्झाय-विभाग
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प्रधानन्त्रमा प्रयाप्रमन्त्र पत्रनयनत्रनयन्त्रमनयन्त्रण ग्रननननननननननननन प्रमप्राप्रप्रमग्रचन्नप्रवचननननन वनमत्रचन्चनपचननगमगधचत्र
* भगवन्त कहे हिवणां मरे तो, सातमी नरके जाय॥५॥खिणइकअन्ते पूछियो रे, सरवारथ सिद्ध विमान । वाजी देवनी दुंदुभी मुनि पाम्या केवल ज्ञान ॥६॥ प्रसन्नचन्द मुनि मुगते गया रे, श्री महावीरना शिष्य । रिद्धि हरष कहे धन्य ते, जिण दीठा रे परतक्ष ॥७॥
ढंढण ऋषि सज्झाय ढंढण ऋषिजी ने वन्दना हूं वारी लाल उत्कृष्टो अणगार र हूं लाल । अभिग्रह लीधो एहवो, लेस्यूं शुद्ध आहार रे ॥हूं. १॥ नितप्रति ऊठे गोचरी, न मिले शुद्ध आहार रे । मूल न ले अणसूझतो, पञ्जर कीधो गात रे॥ हूं. २ ॥ हरि पूछे श्री नेमसे, मुनिवर सहस अढार रे । उत्कृष्टो कुण एहमें, ढंढण अधिको दाखियो । हूं. ३ ॥ श्री मुख नेम जिनंद रे, कृष्ण ऊमाह्यो वांदवा । धन यादव कुल चन्द रे ॥ हूं. ४॥ गलियारे मुनिवर मिल्या, बांधा कृष्ण नरेस रे । किणही मिथ्यात्वी देखने, आण्यो भाव। विसेस रे ॥ हूं. ५ ॥ मुझ घर आवो साध जी, ल्यो मोदक छे शुद्ध रे । मुनिवर विहरीने पांगुरया, आया प्रभुजीने पास रे ॥ हूं. ६ ॥ मुझ लबधे मोदक मिल्या, कहोने तुम्हें किरपाल रे । लबध नहीं बच्छ ताहरी, श्रीपति लबधि निधान रे ॥ हूं. ७ ॥ ए लेवा जुगतो नहीं, चाल्या परठन काज रे । ईंट निवाहे जायने, चूरे कर्म कुं आज रे ॥ हूं. ८ ॥ आणी चढ़ती भावना, पांम्यो केवल नांण रे । ढंढण ऋषि मुगते गया, कहे जिन हर्ष सुजाण रे ॥ हूँ. ९ ॥
श्रावक करणी सज्झाय श्रावक उठ तूं बड़ी परभात, चार घड़ी रहे पिछली रात | मन में समरो श्री नवकार, जिससे होय भवसागर पार ॥१॥ कौन देव कौन गुरु धर्म, कौन हमारा है कुल कर्म। कौन हमारो हैं व्यवसाय, ऐसा चिंतन
कर मन माय ॥२॥ सामायिक को लेना है शुद्ध, धर्म तणी मन राखो । 1 युद्ध । प्रतिक्रमण राई कीजिये, निज प्रायश्चित्त आलोइये ॥३॥ काया । । शक्ति करो पचखाण, सूधी पालो जिनवर आण। पढ़िये गुनिये स्तवन ।
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