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जैन-रत्नसार फूल । कमलनी बांछाये माहे रह्यो, जिम आथमते सूर ॥ भूलो० १४ ॥ रातनो भूल्यो रे मानवी, दिवसे मारग आय । दिवसनो भूल्यो रे मानवी, फिर फिर गोतां खाय ॥ भूलो० १५॥ सद्गुरु कहे वस्तु बोरिये, जे काइ आवे रे साथ । आपणो लाभ उगारिये, लेखू साहिब हाथ ॥ भूलो ॥१६॥
गुरु स्तुति ___ खोवत क्या जग में नादान, सभी के मन में हैं गुरु ध्यान ।। मैल तू मन का धोले, हृदय प्रेम से अमृत घोले। श्वांस श्वांस और रोम
रोम में, बसते दया निधान ॥ सभीके० १॥ ये जीवन मृत्यू का सपना, 1. आंख खुली कोई नहीं अपना । भगवन का तू नाम सुमरले जिससे
हो कल्यान ॥ सभीके० २॥ ज्ञानचन्द* दर्शन का प्यासा, पूरी कर मन की अभिलासा । पागल मन तू छोड़ मोह को, धरले गुरुका ध्यान ॥स०३॥
॥ इति रास तथा सज्झाय विभाग ॥
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* यह स्तवन मिरजापुर निवासी ज्ञान चन्द सीपाणी का बनाया हुआ है।
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