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नननननननननननननवप्रवचनत्रनयन्त्रनयनानधनत्रय
रास तथा सज्माय-विभाग * करमें, भाज्या ते पिण साजा । ऋषी हरष करजोड़ि ने विनवे, नमो नमो कर्म महाराजा ॥ २० १८ ॥
इला पुत्र की सज्झाय नाम इला पुत्र जानिये, धनदत्त सेठनो पूत । नटवी देखी रे मोहियो जे राखे घर सूत ॥१॥ करम न छूटे रे प्राणिया, पूरब नेह विकार । निज कुल छंडी रे नर थयो, नाणी सरम लिगार ॥२॥ इक पुर आयो रे नाचवा, ऊंचो वंस विवेक । तिहां राय जोवा रे आवियो, मिलिया लोक अनेक ॥३॥ दोय पग पहरी रे पावड़ी, बंस चल्यो गजगेल । निरधारा ऊपर नाचतो खेले नवनवा खेल || ढोल बजावे रे नाटकी, गावे किन्नर साद । पायतल घूघर घन घने, गाजे अम्बर नाद ॥५॥ तिहां राय चितेरे । राजियो, लुबधो नटवी रे साथ । जो पड़े नटवो रे नाचतो, तो नटवी मुझ हाथ ॥६॥ दान न आपे रे भूपती, नट जाणे नृप बात । हूं धन वंछू
रे रायनो, राय वंछे मुझ घात ॥७॥ तिहांथी मुनिवर पेखियो, धन धन * साधु निराग। धिग् धिग् विषया रे जीवड़ा, मन आण्यो वैराग ॥८॥
संबर भावे रे केवली, ततखिण कर्म खपाय । केवलि महिमा रे सुर करे समय सुन्दर गुण गाय ॥९॥
मेघकुमार मुनि सज्झाय ___वीर जिनन्द समोसर-योजी, वन्दे मेघकुमार सुण देशन वैरागियोजी। ए संसार असार रे मायड़ी, अनुमति द्यो मुझ आज । संयम विषम अपार रे मा०॥१॥ वछ तू केणे भोलव्यो रे, श्रेणिक तात नरेश कांइ ऊणो किण, ३ दुहव्यो रे । हूं नवि यूं आदेश रे जाया, संयम विष किम निरबाहसी
भार रे जाया हूं. ॥२॥ आदि निगोदेहूं रुल्योजी, सहिया दुक्ख अनंत । सासोश्वासे भव पूरियाजी, तेह न जाणू अन्त हे मा०॥३॥ हिवगा तू बालक अछे जी, जोवन भर यो रे कुमार । आठ रमणि परणाविया रे भोगवि सुक्ख अपार रे जाया ॥en जनम मरण निरयातणाजी, दुक्ख न सह्या जाय । वीर जिणंद बखाणियोजी, ते मैं सुनियो कान हे मायड़ी ॥५॥ .
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