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जैन - रत्नसार
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आदीसरजी ने करम अटारचा, वरस दिवस रह्या भूखा । वीर ने बारे बरस दुख दीधा, ऊपना ब्राह्मणी कूखा || रे० २ || साठ सहस सुत मारया एकण दिन, जोध जवान नर जैसा । सगर हुओ महा पुत्रनो दुखियो, कर्मतणा फल ऐसा || र० ३ ॥ बत्रीस सहस देसांरो साहिब, चक्री सनत कुमार । सोले रोग शरीर में ऊपना, कमें कियो तनु छार ॥ २०४ ॥ कर्म्म हवाल किया हरिश्चन्दके, बेची सुतारा रांणी । बारे वरस लग माथे आण्यो, नीच तणे घर पाणी ॥ २०५ ॥ दधि वाहन राजारी बेटी, चावी चन्दन बाला । चौपद ज्यूं चहुटा में बेची, करम तणाए चाला ॥ २० ६ ॥ सुभूम नांमे आठमो चक्री, कम्में सायर नाख्यो । सोले सहस यक्ष ऊभा देखे, पण किणही नहिं राख्यो ॥ ०७ ॥ ब्रह्मदत्त नामे बारमो चक्री, कम्में कीधो आधो । इम जाणीने अहो भवि प्राणी, कर्म्म कोइ मत बांधो || र० ८ || छपन्न कोड जादवरो साहिब, कृष्ण महाबल जांणी । अटवी मांहि मूंओ एक लो, बिल बिल करतो पाणी ॥ २०९ ॥ पांडव पांच महा झूझारा, हारी द्रौपदी नारी बारे बरस लग वन रडवडिया, भमिया जेम भिखारी ॥ र० १० ॥ बीस भुजा दस मस्तक हुंता, लखमण रावण मारयो । एक लड़े जग सहु नर जीत्या, ते पिण कर्म्म संहार यो || र० • ११ ॥ लखमण राम महा बलवंता, अरु सतवंती सीता । कर्म्म प्रमाणे सुख दुख पांम्या, वीतक बहु तस वीता ॥ २० १२ ॥ समकितधारी श्रेणिक राजा, बेटे बांध्यो मुसके । धरमी नर ने कर्म धकाया, करमं जोरन किसके ॥ २० १३ ॥ सतिय शिरोमणि द्रौपदि कहिये, जिन सम अवर न कोई | पांच पुरुषनी हुई ते नारी, पूरब कर्म्म विगोई ॥ ० १४ ॥ आभा नगरीनो जे स्वामी, साचो राजा चन्द | मांयें कीधो पंखी कूकडो, कर्मे नाख्यो फन्द ॥ रे० १५ ॥ ईसर देव पारवति नारी, करता पुरुष कहावे । अहनिस महिल मसांण में वासो, भिक्षा भोजन खावे ॥ २० १६ ॥ सहस किरण सूरज परतापी, रात दिवस रहें अटतो। सोल कला ससिधर जग चावो, दिन दिन जाये घटतो ॥ २० १७ ॥ इम
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अनेक खंड्या नर
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