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रास तथा सज्झाय-विभाग
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लाल । भांगा तीन से समयादिकना जाणिये हो लाल, लोक अलोकने लोकालोक वखाणिये हो लाल || लोका० २ || एक थकी छे सत समवाय प्ररूपणा हो लाल, कोडाकोडि प्रमाणक जीव निरूपण हो लाल । वारस विहगणी पिटकतणी संख्या कही हो लाल, सासता अरथ अनन्त की छे एहना सही हो लाल || ए० ३ || सुयखंध अध्ययन उद्देसादिके भला हो लाल, संख्यायें एक एक प्रत्येके गुण निला हो लाल । पद एक लाख चौमाल, सहस तेउत्तरा हो लाल || स० ४ ॥ भाष्य चूर्णि नियुक्ती, कर सोहे सदा हो लाल, सुणतां भेद गम्भीर विपत न होय कदा हो लाल । जेह नमावे अंगकी अन्तरगत हसी हो लाल, जल वरसते हुवे खुसी हो लाल || कुण० ५ ॥ जाग्यो धरम सनेह जिनंद लाल, तजिया शास्त्र मिथ्यात सूत्र जाण्यो खोटो हो लाल । जिम मालती लहे भृङ्ग करीनेन विरहे हो लाल, ईश्वर शिर सुरगंग तभी परि नवि वहे हो लाल || तभी ० ६ ॥ ए प्रवचन निग्रन्थ तणी जुगते बडी हो लाल, सोकर सेलडी द्वाख, थकी पिण मीठडी हो लाल । स्यूं कहिये बहु बात विनय चन्द्र इम कहे हो लाल, एहना सुनने भाव श्रोता अति गहगहे हो
लाल || श्रोता० ॥
हिमवन्त परवत सेती निकल्या रे, सूरपन्नत्ती नामे परगरी रे, जेहनी छै
जोर, कुण न माहरो हो
भगवती सूत्र सज्झाय
पंचम अंग भगवती जानिये रे, जिहां जिन वरना वचन अथाह रे । मानूं पर तिख गंग प्रवाह रे ॥१॥ उद्दाम उवांग रे । सूत्रतणी रचना
दरिया जिसी रे, महिला अरथ ते सजल तरंग रे ||२|| इहां तो सुयसंध एक अति भो रे, एकसो ए अध्ययन उदार रे । दश हजार उसा जेहना रे, जिहां कीन प्रश्न छत्तीस हजार रे ||३|| पद तो दोय लाख अरथे भरया
ऊपर सहस अठ्यासी जान रे । लोकालोक स्वरूपनी वर्णनारे, विवाह पन्नत्ती अधिक प्रमान रे ||१|| करिये पूजा अने पर भावना रे, धरिये सद्गुरु ऊपर राग रे, सुनिये भगवती सूत्र रागसूं रे, तो होय भवसागर नो
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