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जैन - रत्नसार
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सम्यज्ञान उदय होय जेम युगति मन आणो प्रेम रे
त्याग रे ||५|| गौतम नामे द्रव्य चढ़ाइये रे, रे । कीजे साधु तथा साहमी तणी रे, भगति ॥६॥ इण विधसूं ए सूत्र आराधतां रे, इण भव सीझे चंछित काज रे । परभव विनय चन्द कहे ते लहे रे, मोहन मुगति पूरीनो राज रे ॥७॥ ज्ञाता सूत्र सम्झाय
छठी अंग ते ज्ञाता सूत्र बखाणियेजी, जेहना छे अरथ अनेक उद्दण्ड हो | म्हारा सुणज्यो धरि नेह सिद्धान्तनी वातडीजी ॥ श्रवणे सुणतां गाढो रस ऊपजेजी, मधुरता तर्जित जिम मधुखण्ड हो ॥ १ ॥ जंबूद्दीव पन्नची उपांग छे जेहनोजी, इण मांहे जिन पूजानी विधि जोर हो || म्हा० ॥ अर्चित सुण परम शान्ति रस अनुभवेजौ चर्चित सुणि करे सम सोर हो ||२|| नगर उद्यान चैत्य वनखंड सोहामणोजी, समवसर राजानो मात ने तात हो || म्हा• ॥ धरमाचारज धर्म कथा तिहां दाखतीजी, इहलोक परलोक शुद्धि विशेष सुहात हो || ३ || भोग परित्याग प्रव्रज्या पर्यवाजी, सूत्र परिग्रहवारू तप उपधान हो || म्हा० ॥ संलेहण पच्चक्खाण पादोप गमनता जी, स्वर्ग गमन शुभ कुल उतपत्ती हो ||४|| बोधिलाभ वलि तंत अनन्तक्रिया कहीजी, धर्म कथाना दोय छे खंध हो || म्हा० || पहिलाना उगणीस अध्ययन ते आज छे जी, बीजाना दस वर्ग महा अनुबन्ध हो ||५|| ऊंठकोड़ि तिहां सबल कथानक भाषियाजी, भाष्या वलि उगणीस उद्देस हो || म्हा० ॥ संख्याता हजार भला पद एहनाजी, एह थकी जाये कुमति कलेश हो ॥६॥ विनय करे जे गुरुनो बहु परेजी, तेहने श्रुत सुणतां बहु फल होय हो || म्हा• ॥ ते रसिया मन बसिया विनयचन्दनेजी, सो मांहे मिले जोया एकके दोय हो ||७||
उपासकदशा सूत्र सज्झाय
हिवे सातमो अङ्ग ते सांभलो, उपासगदशा नामे चंग रे । श्रमणो पासकनी वर्णना, जसु चन्दपन्नत्ती उपांग रे ॥१॥ मन लागो मोरो सूत्रथी, ए तो भव वैराग तरंग रे । रस राता ज्ञाता गुण लहें, परमारथ सुविहित