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रास तथा सज्झाय-विभाग ।
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सुपसाय की। विनयचन्द्र* क हे मैं करी सहेली, अंग इग्यार सज्झाय की ॥ स० ७ ॥
आचारांग सज्झाय ___ पहिलो अंग सुहामणो रे, अनुपम आचारांग रे ॥ सुगुण नर ॥ वीर जिनन्दे भाखियो रे लाल, उववाई जास उवंग रे ॥ सु. १ ॥ वलिहारी ए । अङ्गनी रे, हूं जाऊं बारम्बार रे । विनवे गोचरी आदर रे लाल, जिहां साधु । तणो आचार रे ॥ सु० २॥ सुय खंध दोय छै जेहनारे, प्रवर अध्ययन पचवीस रे । उद्देशादिक जाणिये रे लाल, पिच्चासी सुजगीस रे ॥ सु० ३ ॥ हेतु जुगत कर सोभता रे, पद अढार हज्जार । अक्षर पदने छेहडे रे लाल, संख्याता श्रीकार रे ॥ सु० ४ ॥ आगम अनन्ता जेहमां रे, बलि अनन्त पर्याय रे । त्रस परित्तो छ इहां रे लाल, थावर अनन्त कहाय रे ॥सु० ५॥ निवद्ध निकाचित सासता रे, जिन प्रणित ए भाव रे। सुणतां आतम उल्लसे रे लाल, प्रगटे सहज स्वभाव रे ॥ सु० ६॥ सुगुण श्रावकवारू श्राविका रे, अंगे धरिय उल्लास रे। विधिपूर्वक तुमें सांभलो रे लाल, गीतारथ गुरु पास रे ॥ सु० ७॥ ए सिद्धान्त महिमा निलो रे, . उतारे भव पार रे । विनयचन्द्र कहे माहरे रे लाल, एहिज अंग आधार । रे॥ सु० ८ ॥
सुयगडांग सूत्र सज्झाय वीजो अङ्ग तुमे सांभलो, मनोहर श्रीसुयगडांग। मोरा साजन त्रिण सै सठ पांखडी तणो, मत खंड्यो धर रंग ॥मोरा साजन ॥ मीठी रे लागी वाणी जिन तणी, जागी जेहथी रे सुज्ञान । ए वाणी मन भाणी माह रे,
मानूं सुधा रे समान ॥ मो० २॥ राय पसेणी उपांग छे, जेहनो ए सूत्र ३ गम्भीर । बहु श्रुत अरथ जाणे सहू, क्षीर नीर धनु तीर || मो० ३॥ ३ एहना रे सुयखंद दोय छे, वलि अध्ययन तेवीस । उहेसा समुइसा जिहां ३ भला संख्याये रे तेत्रीस ॥ मो० ४ ॥ नय निक्षेप प्रमाण भरया, पढ़ छत्तीस
- ये ग्यारह अंगोंकी सज्झाय सं० २७१५ मे श्री विनयचन्दजी ने बनाई है।
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