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धननयन्त्र
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ण वन्य प्रायनन्द्रयाण प्रश्नपत्र
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नयनत्रनाममननननननननननननयन्त्रण
जैन-रत्नसार एक, साधूने परिवार । मुक्ति गए प्रभु मास की, संलेखन कर सार ॥१२॥
॥ ढाल ॥ सिंहपुरी नगरी तिहां राजा, विष्णु नरेसर तात जी। कंचन वरण श्रेयांस प्रभूजी, उपज्या विष्णु सुमात जी ॥१॥ नमो रे नमो श्री त्रिभुवन राजा, खडग लंछन प्रभु पाय जी । धनुष असी देह मांन चौरासी, लाख वरसना आयु जी ॥२॥ गणधर बहुत्तर सहस चौरासी, मुनि श्रमणी तीन लक्ष जी। तीन सहस चलि सहस गुण्यासी, श्रावक पुण दो लक्ख जी ॥३॥ अड़तालीस सहस वलि चौ लख, श्राविका जाणो सार जी । जक्ष अमर सुरी मानवी जांणो, श्री संघ सांनिधकार जी ॥४॥ सहस मुनीसरने परिवारे, प्रभुजी शिखर समेत जी। मास संलेखण कर प्रभु पहुंता, मुक्ति महल सुख हेत जी ॥५॥ हिव कपिलपुर तात भूपति, श्री कृतवर्म सुमात जी । श्यामा देवी अंगज ऊपना, विमलनाथ जग तात जी ॥६॥ सूकर लंछन सोवन काया, साठ धनुष देह मान जी । साठ लाख वच्छरनो आयु, शिष्य सतावन जान जी ॥७॥ साठ सहस मुनि अडसय इक लख, श्रमणी श्रावक जांण जी। आठ सहस दोय लक्ष श्राविका, चौ लक्ष संख्या आण जी ॥८॥ सन्मुख सुरवर विदिता देवी, प्रभुजी शिखर समेत जी । षट् हजार साधु परिवारे, मुक्ति गए सुख हेत जी ॥९॥ नगरी नाम अयोध्या नरवर, सिंहसेन जग सार जी। सुयसा मात तिणे सुत जाया, प्रभुजी अनन्त कुमार जी॥१० लंछन श्येन सोवन सम काया, धनुष पचास प्रमाण जी । तीस लाख वच्छरनो आयु, गणधर पचवीस आंण जी ॥११॥ छासठ सहस मुनिवर सोहे, बासठ श्रमणी हजार जी । छ हजार लाख दोय श्रावक, श्रावकणी इम धार जी ॥१२॥ चार लाख वलि चवद हजार, ए अंकुशा देवी होय जी । पाताल यक्ष श्री संघ के सांनिध, कारी नित प्रति जोय जी ॥१३॥ आठ सै मुनिवर ने परिवारे, शिखर समेत प्रधान जी । मास संलेखन कर गिरि ऊपर, पुहता पद निरवान जी ॥१४॥
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