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ใครใครได้ไปัดโยคไตใจในไตได้
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रास तथा सज्झाय-विभाग अधिकारोजी। समरे साह करावियो, ए पनरमो उद्धारोजी ॥१८॥ सम्वत् पनर सत्यासिये, बैशाख वदि शुभ वारोजी। करमे डोसि करावियो, ए सोलमो उद्धारोजी ॥१९॥ सम्प्रति काले सोलमो, ए वरते छे उद्धारोजी । नित नित कीजे वन्दना, पांमीजे भव पाराजी ॥२०॥
॥दोहा॥ वलि शत्रुजय महातम कहूं, सांभलो जिम छे तेम । सूरि धनेसर इम कहे, महावीर कह्यो एम ॥१॥ जेहवो तेहवो दर्शनी, शत्रुजय पूजनीक । भगवन्तनो वेष मानतां, लाभ हुए तहतीक ॥२॥ श्री शत्रुजय ऊपरे, चैत्य करावे जेह । दल परमांन समो लहे, पल्योपम सुख तेह ॥३॥ शत्रुञ्जय ऊपर देहरो, नवो नीपावे कोय । जीर्णोद्धार करावतां, आठ गुणो फल होय ॥४॥ सिर ऊपर गागर धरी, स्नात्र करावे नार । चक्रवर्त्त नी स्त्री थई, शिव सुख पामे सार ॥५॥ काती पूनम शत्रुञ्जय, चढिने करे उपवास । नारकी सौ सागर समो करे करमनो नास ॥६॥ काती परब मोटो कह्यो, जिहां सीधा दश कोड़। ब्रह्म स्त्री बालक हत्या, पापथी नाखे छोड़ ॥७॥ सहस लाख श्रावक भणी, भोजन पुण्य विशेष । शजय साधु पड़िला भतां अधिको तेहथी वेष ॥८॥
॥ ढाल ॥ शत्रंजय गयां पाप छुटिये, लीजे आलोयण एमो जी । तप जप कीजे तिहां रही, तीर्थकर कह्यो तेमो जी ॥१॥ जिण सोनानी चोरी करी, ए आलोयण तासोजी। चैत्रे दिन शत्रुजय चढी, एक करे उपवासोजी ॥२॥ वस्तुतनी चोरी करी, सात आंबिल शुद्ध थायोजी । काती सात दिन तप कियां रतन हरन पाप जायोजी॥३॥ कांसी, पीतल, तांबा रजतनी, चोरी कीधी जेणो जी । सात दिवस पुरिमढ करे, तो छूटे गिरी एणोजी ॥४॥ मोती, प्रवाला, मुंगिया, जिण चोरया नर नारोजी । आंबिल कर पूजा करे, त्रिण टङ्क
शुद्ध आचारोजी ॥५॥ धान, पानी रस चोरिया, ते भेटे सिद्ध क्षेत्रीजी ।। ३ शजय तलहटी साधु ने, पडिलामे सुध चित्तोजी ॥६॥ वस्त्राभरण जिने
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