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त्रपत्र-मनननननननननननननननननननननननननननपत्रण प्रयतमनननननननननननननमय
जैन-रत्नसार हरया, ते छूटे इण मेलोजी।आदिनाथ नी पूजा करे, प्रहऊठी बहु बेलोजी ॥७॥ देव गुरु नो धन जेहरे, ते शुद्ध थाये एमोजी । अधिको द्रव्य खरचे तिहां, पात्र पोषे बहु प्रेमोजी ॥८॥ गाय भैस घोड़ा मही, गज ग्रह चोरन। हारोजी । देते वस्तु तीरथे, अरिहन्त ध्यान प्रकारोजी ॥९॥ पुस्तक देहरा पारका, तिहां लिखे आपनो नामोजी । छूटे छम्मासी तप कियां सामायिक तिन ठामोजी ॥१०॥ कुंवारी परिव्राजका, सधव, विधव गुरु नारोजी । व्रत भांजे तेहने कह्यो, छम्मासी तप सारोजी ॥११॥ गो, विप्र, स्त्री, बालक, ऋषि, एहनो घातक जे होजी । प्रतिमा आगे आलोवता, छूटे तप कर तेहो जी ॥१२॥
॥ ढाल ॥ सम्प्रति काले सोलमो, ए वरते छे उद्धार । शत्रुजय यात्रा करूं ए, सफल करूं अवतार ॥१॥ छहरी पालतां चालिये ए, शत्रुजय केरी वाट । पालीताणे पंहुचिये ए, संघ मिल्या बहु थाट ॥२॥ ललित सरोवर पेखिये ए, | वलि सत्तानी वावि । तिहां विसरामो लीजिये ए, वड़ने चौतरे आवि ॥३॥ * पालीताणे पाजड़ी ए, चढ़िये उठ परभात । शत्रुञ्जय नदिय सोहामणि ए,
दुर थकी देखंत ॥१॥ चढ़िये हिङ्गलाजने हडे ए, कलि कुंड नमिये पास । बारी मांहे पेसिये ए, आनी अंग उल्लास ॥५॥ मरुदेव टुंक मनोहरु ए, गज चढ़ि मरुदेवी माय । शान्तिनाथ जिन सोलमो ए, प्रणमी जे तसु पाय ॥६॥ वंश पोरवाडे परगड़ो ए, सोमजी साहमलार । रूपजी संघवी करावियो ए, चौमुख मूल उद्धार ॥७चौमुख प्रतिमा चरचिये ए, भमती मांहे भला बिम्ब । पांचे पाण्डव पूजिये ए, अद्भुत आदि प्रलम्ब ॥८॥ खरतर वसही खंतसू ए, बिम्ब जुहारूं अनेक । नेमनाथ चवरी नमू ए, टालं अलग उदेग ॥९॥ धरम दुवार मांहिं नीसरूं ए, कुगति करूं अति दुर । आऊ आदिनाथ देहरे ए, करम करूं चकचूर ॥१०॥ मूल नायक प्रणम मुदा ए, आदिनाथ भगवंत । देव जुहारूं देहरे ए, भमती माहे भमंत ॥११॥ शत्रुञ्जय ऊपर कीजिये ए, पांचे ठाम स्नात्र । कलश अठोत्तर
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नयनपत्र
मानतल