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६२४
जैन-रत्नसार
॥ राग सिन्धूडो आशावरी ॥ भरत तने पाट आठमें, दंडवीरज थयो रायोजी । भरत तनी पर संघ कियो, शत्रुञ्जय संघवि कहायोजी ॥१॥ शत्रुजय उद्धार सांभलो, सोल मोटा श्री कारोजी । असंख्यात बीजा वली, तेन कहूं अधिकारोजी ॥२॥ चैत्य करायो रूपातणो, सोनानो बिम्ब सारोजी । मूल गो बिम्ब भण्डारियो, पच्छिमदिसि तिण बारोजी ॥३॥ शत्रुजयनी यात्रा करी, सफल कियो अवतारोजी । दण्डवीरज राजातणो, ए बीजो उद्वारोजी ॥४॥ सो सागरोपम व्यति क्रम्या, दण्डवीरज थी जीवाडोजी । ईशानेन्द्र करावियो, ए तीजो उद्धारोजी ॥५॥ चौथा देवलोकनो धणी माहेन्द्र नाम उदारोजी । तिण शत्रुञ्जयनो कर वियो, ए चौथो उद्धारोजी ॥६॥ पांचमा देवलोकनो धणी ब्रह्मेन्द्र समकित धारोजी। तिण शत्रुञ्जय करावियो, ए पांचमो उद्धारोजी ॥७॥ भुवनपति इन्द्रनो कियो, ए छटो उद्धारोजी । चक्रवत्ति सगरतणो कियो, ए सातमो उद्धारोजी ॥८॥ अभिनन्दन पासे सुन्यो, शत्रुजय नो अधिकारोजी । व्यन्तर इन्द्र करावियो, ए आठमो उद्धारोजी ॥९॥ चन्द्र प्रभु खामिनो पोतरो, चन्द शेखर नाम मल्हारोजी । चन्द्रयशराय करावियो ए नवमो उडारोजी ॥१०॥ शान्तिनाथनी सुणि देशना, शान्तिनाथ सुत । सुविचारोजी । चक्रधर राय करावियो, ए दशमो उद्धारोजी॥११॥ दशरथसुत जगदीपतो, मुनि सुव्रत स्वामी वारोजी । श्रीरामचन्द्र करावियो, ए ग्यारमो उद्धारोजी ॥१२॥ पाण्डव कहे हमे पापिया, किम छूटे मेरी मायोजी, कहे कुन्ती शत्रुजय तणी, यात्रा कियां पाप जायोजी ॥१३॥ पांचे पांडव संघ करी शत्रुजय, भेट्यो अपारोजी । काष्ठ चैत्य बिम्ब लेपना ए बारमो उद्धारोजी ॥१४॥ मम्माणी पाखाणनी, प्रतिमा सुन्दर सरूपोजी । श्री शत्रुजयनो संघ करी, थापी सकल सरूपोजी ॥१५॥ अट्ठोत्तर सौ वरसां गयां, विक्रम नृपति जिवारोजी। पोरवाड जावड करावियो, ए तेरमो उद्धारोजी ॥१६॥ सम्वत् बार तिडोतरे श्रीमाली, सुविचारोजी । बाहडदेह मुहतें करावियो, ए चवदमो उद्धारोजी ॥१७॥ सम्बत् तेरे इकोत्तरे देसलहर