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जैन - स्त्रसार
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मारी निवारी, शान्ति करी संचरिया जी । जे भवि मंगल कारण ध्यावे, ते हुए गुण गण भरिया जी || १ || वर्त्तमान जिन सब मुख कारण, अतीत अनागत वन्दो जी । बारे चकी नव नारायण, नव प्रति चक्री आनन्दो जी ॥ रामादिक जे पूरब सलाका, वंदत पाप निकन्दो जी । द्रव्य निक्षेपे जिन सम जाणो, काटे भव भय फन्दो जी ||२|| अंग उपांगे जिनवर प्रतिमा, श्री जिन सरखी भाखी जी । द्रव्य भाव बहु भेदें पूजा, महा निशीथें साखी जी ॥ विषय निर्वृत्ति सत आरम्भे, विनय तपीते जाणो जी। शुभ योगे नहिं आरम्भ कारी, भगवई अंग प्रमाणो जी ॥३॥ थापना सत्ये देवी निर्वाणी, श्री संघने सुखकारी जी | कारण थी सब कारज सिद्ध, जिनवर आज्ञा धारी जी || श्री जिन कीर्ति सुरीश्वर गच्छपति, पाठक श्री ऋद्धि सारो जी । समकित धारी देव सहाई, सुख संपति दातारो जी ॥४॥ श्री कुन्थु जिन स्तुति ( पंच अनंत महंत गुणकर )
श्री कुंथु जिनेश्वर, वन्दु ं हूं बारम्बार । श्री शूर नरेश्वर, दया मूर्त्ति अवतार ॥ हस्तिनापुर नगरी, जन्म हुओ सुखकार । श्री देवी माता, सतियन में सरदार ||१|| वर इक्ष्वाकु सुहंकर, वंछित फल दातार । लञ्छन ली अज सोहे, शास्त्र तणो आधार ॥ सुर गुरु अति उत्तम, कहि न सके गुण पार । पय पंकज सेवत सब जीवन सुखकार ॥२॥ वदि पंचम वैशाखे, दीक्षा प्रभु धार । केवल ज्ञाने पायो, सुदी चैत्र की सार ॥ गणधर स्वयम्भू सोहे, किया पैंतालीस गणधार । वदि एकम वैशाखे, पहोंचे मोक्ष दुवार ॥३॥ यक्ष शासन के नायक, नाम गन्धर्व मनुहार । श्री बला देवी को ध्यावो, संसार सुक्ख दातार || श्री रत्न सूरीश्वर, खरतरगच्छ आचार | तास सीस सुवाचक, सूरजमल उरधार ||४||
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श्री अरनाथ जिन स्तुति
( मूरति मन मोहन )
सूरत दिल सोहत, कंचन बरणी काय । नृपति सुदर्शन नन्दन, माता