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स्तुति - विभाग
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जग सहाई जी ॥ सन्मुख यक्षदेव प्रभुजी के, इनकी महिमा सवाई जी । आनन्दकारी संघने होय जो, यति सूरज के सहाई जी ॥४॥ श्री अनन्तनाथ जिन स्तुति ( अश्वसेन नरेसर )
श्री अनन्त जिनेश्वर वन्दु हुं बारम्बार नगरी विनीता सोहे अति गुणसार । शुक्ल वैशाख त्रयोदशी, हुआ जन्म सुखकार । नरपति सिंहसेन के, सुख सम्पति दातार ॥ १॥ सुयशा रानीसे जायो, यह चउदमो अवतार | कञ्चन बर प्रभु जी सोहे, वंश इक्ष्वाकु उदार ॥ पञ्चाशत धनुष प्रमाणे, भ्रमत करत उपगार । लञ्छन बाज संयुक्ते, आगम मांहि उदार ॥२॥ वैशाख सुदी चौदस को, संयम लीनो भार । दुष्कर करम खपाया, जप तप शुद्ध विचार || वर्ष तीन छद्मस्यें पाल्यो, आनन्द हर्ष अपार । चौदस वदि वैशाखें, ज्ञान पंचम शुभ धार ॥३॥ प्रभु धरम प्रकाशे, गणधर यशोधर सार । चैत्र शुक्ल पञ्चमी, लियो परम पद धार ॥ यक्ष पातालें सोहत, अंकुशा देवी हितकार | श्री रत्नसूरि शिष्य, मोतीचन्द हियधार ||४|| श्री धर्मनाथ जिन स्तुति ( पंच विदेह विषे विहरंता )
भरतें धरमनाथ विचरन्ता, भानु राजेश्वर वीर कहन्ता । मातु सुव्रता के नाऊं शीश, निसि दिन ध्याऊं तूं जगदीश || १ || इक्ष्वाकु वंश में आप सोहन्ता, वर्ण सुवरणें झल हल कन्ता । लांछन वज्र चरण दम कन्त, रतन पुरी थी महिमावन्त ॥२॥ गणधर मुख्य अरिष्ट कहन्त, तेयालीस संख्या है मतिमन्त । सूत्र अरथ विस्तारक अंग, कहे वीतराग उछरंग ॥३॥ शासन यक्ष किन्नर कहावे, ध्यावत देवी कंदरपा आवे । सरब संघ का विघन निवारे, यति सूरज का वंछित सारे ||४||
श्री शान्ति जिन स्तुति
शान्ति जिनेसर जग अलवेसर, अचिरा उदर अवतरिया जी । विश्वसेन नृप नंदन जग गुरु, हथणापुर सुखकरिया जी ॥ इत उपद्रव
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