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श्री वासुपूज्य जिन स्तुति
(विमलाचल मंडन) जग नायक तारक, जयाराणी के नंद । चरण युग नित प्रति, प्रणमे इन्द्र अहमिन्द्र ॥ वासुपूज्य जिनवर पुर, चम्पा जन हुओ आनंद। रक्त। वरण प्रभुजी सोहे, वंश इक्ष्वाकु सुखकंद ॥१॥ बरस लाख बहत्तर, आयू जिनवर जान । पिता वासुपूज्य जी, पुर चम्पा में ठान ॥ फागुन वदि वारस जन्म हुओ सुविहान । तीर्थंकर वारमें, हो गयो कोड़ि कल्याण ॥२॥ चौदश शुक्ल फागुन की, संयम तप को कीन । दुज सुदी माघ की, केवल ज्ञान लयलीन ॥ सुभूम गणधर प्रभुजी के, साधु परषदा दीन । साध्वी सम्प्रदायादि, धर्म ध्यान पर बीन ॥३॥ आषाढ़ सुदी चौदस दिन, पायो मोक्ष दुवार । शासन के हित चाहत, कुमार यक्ष शुभकार ॥ देवी चण्डा सबही ध्यावत, जैन धर्म जयकार । श्री रत्नसूरिके शिष्य, मोती चन्द सुखकार |
श्री विमल जिन स्तुति
(मन सुध वंदो) शुद्ध दिल करि बंदो भविजन, श्री विमल जिन पाया जी। है साठ ।। धनुष शरीर सुसज्जित, रंग पीत है काया जी ॥ नगरी कपिलपुर में जनमे, देव देवेन्द्रे आया जी। कृत चरम नृपति श्यामा के नंदन, लंछन शूकर सुहाया जी ॥१॥ माघ व्यतीत चतुरथी की दीक्षा, सहस एक मुनि संघाते जी । छद्मकाल दोय मास बितायो, छठ पोष सुदी शुभकाले जी ॥ केवल ज्ञान शुभ पाय जिनेश्वर, जिनवाणी उजवाले जी। नयनिक्षेप सरूप जो जाने, पावे मोक्ष विहारे जी ॥२॥ क्रोध अज्ञान तिमिर अघ नाशक, प्रभुवर शूर समानी जी । भवनिधि सरनी पार उतरनी, शुभ समकित सहनानी जी ॥ है प्रभु वाणी अमृत समानी, धारो गुण मणि खाणी जी। जिनवर। गणधर इम परिभाखें, आत्मधर्म जिन वाणी जी ॥३॥ शासन देवी समकित सेवी, देवी विदिता माई जी। विघन निवारण समकित कारण, सेवत सब
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