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स्तुति - विभाग
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मेरो नंद || भद्दिलपुर स्वामी काटे भवना कंद | चित चोखे नमिये श्री शीतल जिन चंद ||१|| अतीत अनागत हुआ होस्ये और अनंत । संप्रतिकाले जे, क्षेत्र विदेह विचरन्त ॥ त्रिहुभव नेठवणा सासय असासय हुत, ते सगला त्रिकरण प्रणमूं श्री अरिहन्त ||२|| कालिक उत्कालिक अंग अनंग समृद्ध । नयभंग निक्षेपा स्याद्वाद् नित सिद्ध || भविजन उपगारी भारी जिन उपदेश | श्रुत श्रवणे सुणतां नासे कोडि कलेश ॥३॥ ब्रह्म यक्ष अशोका शासन सूरि सुविचार | संघ सानिधकारी निरमल समकित धार ॥ चिन्ता दुःख चूरे पूरे मनह जगीस । ध्यान तेहनो धरिये कहे जिन लाभ सुरीस ||४|| श्री श्रेयांस जिन स्तुति
( शान्ति जिनेसर अति अलवेसर )
श्री श्रेयांस तीर्थेश्वर त्रीलोकेश्वर, जगपति जय शुभकारी जी । विष्णु नृपति के अङ्गज कहिये, मात विष्णु अवतारी जी ॥ सुवर्ण वर्णे जिन जी छाजे, गैण्डा लञ्छन भारी जी । वारस में फागण वदि जनम्यां, अयश अशुभ निवारी जी ॥१॥ सिंहपुरी में स्वामी जनम पायो, इन्द्र इन्द्राणि विचारी जी । जाकर जिनजी का उत्सव कीजे, भरतक्षेत्र उजियारी जी ॥
दि फागुन की तेरस दीक्षा, छद्म मास दोय धारी जी । वदि अमावस माघ के दिन, केवल ज्ञान विस्तारी जी ||२|| गौशुभ गणधर अपने कीने, श्रमण संघ अति भारी जी । चौरासी हजार साधु की गणना, साधवियां सुखकारी जी ॥ सहस तीन एक लख श्रमणी, बोध वीज बहु पाई जी । सहस उनहत्तर दोय लख श्रावक, इम परिवार बखाणी जी ||३|| सहस अड़तालीस लख चार श्रावकण्या, चारह व्रत गुण खाणी जी । यक्षराज शासन के रक्षक, मानसी देवी आणी जी || इनकी भक्ति भवि भावें कीजें, मंघ सकल सुखकारी जी। जिन रत्नमूरि के शिष्य, नूरजमल गुण गाणी जी ||४||