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मन्त्र प्रत्यत्रय प्रजननयन्त्रयप्रणप्रत्रप्रनत्र प्रधानमन्त्रनप्रनय प्रत्रनयनत्रय-चन्नयनत्र यन्त्रननननननननननननननननननन्न प्रजननयन्त्रमन्त्रनयन्यन्यनयन्त्रणमा
स्तुति-विभाग
स्तुति-विभाग rrn.mmmmmmmmm मधुरिक रसभर गुरू सरोवरम् । परमत तिमिर करण हरणोडर दिनकर , किरण सहोदरम् ॥ नैगम नय हेतु भंग गम्भीरिम गणधर देव गीप्पदम् । जिनवर वचन मवनि मवतात सुचि दिशतु नतेषु सम्पदम् ॥३॥ श्री मद्वीर चरम तीर्थाधिप मुख कमलाधि वासिनी । पार्वण चन्द्र विशद वदनोज्वल राजमराल गामिनी ॥ प्रदिशतु सकल देव देवीगण परिकलिता सतामियं । विचकल धवल कुवलयकल मूर्तिः श्रुतदेवी श्रुतोच्चयम् ॥४॥
चतुर्दशी स्तुति दें दें कि धप मप धुधुमि धो धो ध्रसकि धर धप धौरवं । दों दों कि । दो दो दागिड़दि द्रागड़दीकि द्रमकि द्रण रण द्रेणवं ॥ झझि झे कि झे झे
झणण रण रण निजकि निज जन रंजनं । सुर सयल सिखर भवति सुखदं पार्श्व जिनपति मज्जनं ॥१॥ कट रेंगिनि थोंगिनि किटति गिगडदां धधुकि धुट नट पाटवं । गुण गणण गुण गण रणकिणेणे गुणण गुणगण गौरवं ॥ झझि झकि झ झ झणण रण रण निजकि निजजन सजना । कलयन्ति कमला कलित कलि मल, मुकुलमीश महे जिनाः ॥२॥ ठकि ट्रेकि → → ठहि ठह्निक ठहि पट्टा ताड्यते। तल लोंकि लों लों खि खिनि
खि डेंखिनि वाद्यते ॥ ॐ ॐ कि ॐ ॐ धुंगि धुंगिनि धोंगि धोंगिनि कलरवे। जिनमत मनं तं महिम तनुतां नमति सुर नर मुच्छवे ॥३॥ दांकि खंदां खुखुड़दि खंदा खुखुड़दि दोंदों अम्बरे । चाचपट चचपट रणकि में णें डणण डें . डम्बरे ॥ तिहां सरगमपधुनि निधपमगरस सस ससस सुर सेवता । जिन नाट्यरंगे कुशल मुनिसं दिसतु शासनदेवता॥४॥
अमावस्या स्तुति । सिडारथ ताता जगत विख्याता, त्रिसला देवी माय । तिहां जग गुरु जनम्या सब दुख विरम्या, महावीर जिन राय ॥ प्रभु लेई दीक्षा कर हित शिक्षा, देई संवत्सरी दान । बहु करम खपेवा शिव सुख लेवा, कीधो तप
इस स्तुति को खरतर गच्छीय जं० यु० प्र० वृ. भट्टारक श्री दादाजी श्री जिन कुशल भी सूरिजी महाराज ने मृदंग के वोलों पर वनायी है।
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