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स्तवन- विभाग
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फणधर हटी ने प्रगट थई फूल माल । शिव कुमरे योगी सोवन पुरसो कीध, इम एणे मन्त्रे काज घणा ना सिद्ध || ७५|| ए दश अधिकारे वीर जिनेसर भाख्यो, आराधन केरी विधि जिणे चित्त मां राख्यो । तिणे पाप पखाली भवभय दुरे नांख्यो, जिन विनय करन्ता सुमति अमृतरस चाख्यो ॥७६॥ नमो भवि भावसुं ।
सिद्धारथ राय कुल तिलो ए, त्रिशला मात मल्हार तो । अवनी तले तुम अवतरचाए, करवा अम्ह उपगार तो ॥जयो जिनवीरजी ए ७७ || मैं अपराध करचा घणा ए, कहता न लहुं पार तो। तुम्ह चरणे आव्या भणी ए, जो तारे तारतो ॥ जय० ७८ || आश करी ने आवियो ए, तुम चरणे महाराज तो । आव्या ने उवेखस्यो ए, तो किम रहस्ये लाज तो ॥जयो० ७९|| करम अलूझन आकरा ए, जनम मरण जंजाल तो । हूं हूं एह थी ऊभग्यो ए, छोड़ावो देव दयाल तो ॥ जयो० ८० || आज मनोरथ मुझ फल्या ए, नाठां दुख जंजाल तो | तूठो जिन चौवीसमो ए, प्रगट्या पुण्य कल्लोल तो ॥ जयो०८१ ॥ भव भव विनय तुम्हारडो ए, भाव भगत तुम पाय तो । देव दया करि दीजिये ए, बोधबीज सुपसाय तो | जयो० ८२ ॥
कलश
इम तरण तारण सुगति कारण, दुःख निवारण जग जयो । श्री वीर जिनवर चरण धुणता, अधिक मन उलट थयो ||८३|| श्री विजयदेव सुरिंद पटधर, तीरथ जंगम इण जगे । तप गच्छपति श्री विजय प्रभ, सूरी जगमगें ||८४|| श्री हीर विजय सूरि शिष्य वाचक, कीर्ति विजय सुर गुरु समो । तस शिष्य वाचक विनय विजयें, थुण्यो जिन चौवीशमो ||८५ || सय सत्तर संवत् उगणतीसे, रह्या रानेर चौमास ए । विजय दशमी विजय कारण, कियो गुण अभ्यास ए ॥ ८६ ॥ नरभव आराधन सिद्धि साधन, सुकृत लील विलास ए । निर्जरा हेते स्तवन रचियूं नाम पुण्य प्रकाश
ए ॥८७॥
* यह आलोयग स्तवन विनय विजय जी ने १६७० विजय दशमी को बनाया है ।
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