________________
५८६
VAVA
जैन-रत्नसार
101 111AL WAS
www wwww wwww
सहस्र कूट स्तवन
सहियां ए सहस कूट महाराज, वंदो सब भाव सं हे माय ॥ वंदो० ॥ तीस चौबीसी पूजिये हे माय, विहर मांन भगवान सेवो चित चाह सूं हे माय ॥ से० १ ॥ एक सौ साठ जिनेसर हे माय, उत्कृष्टा अवधार निरंजन ध्यावसूं हे माय || नि० २ || एक सौ बीस जिनंदना हे माय, कल्याणक सब होय सेवो भवि भाव सूं हे माय || से० ३ || चार जिनेसर शाशता हे माय, जयवंता जगदीश अधिक गुण गावसां हे माय ॥ अ० ४ ॥ बहुत दिनांरो उमाहड़ो हे माय, ते फल लियो मुझ आज जिणंद पद सेवतां हे माय ॥ जि० ५ ॥ उच्छव अधिक सुहामणा हे माय, खूब थया अधिक मन रंग सूं हे माय ॥ अ० ॥ उगणीसे चालीशमें हे माय, पोष मास सुखकर भगत कर भाव सूं हे माय ॥ भ० ७ ॥ संघ सहू हरषे करी हे माय, पूज रची चित चाह वंछित सब पामियां हे माय ॥ वं० ८ ॥ धरम विशाल दयालनो हे माय, सुमति कहे मन रङ्ग सकल गुण दीजिये हे
माय ॥ स० ९ ॥
श्री जिनदत्त सूरि उत्पत्ति स्तवन
वर लच्छि विलाश सुवाश मिले, गुरु नामें मनरी आश फले । दोषी दुश्मन सब दूर टले, सहसा बहु संपति आय मिले ॥१॥ जय जय जिनदत्त सुरिंद यती, श्रुतधार कृपालक शीलवती । जसु नाम रहे नहीं पाप रती, जेह नी महिमा जगमांहे अती ||२|| शुभ मंगल लील विलास सदा, दुख रोग दुकाल न होय कदा | आराध्यां आवे सुगुरु मुदा, सुप्रसन्न हाजर होय तदा ||३|| जिण जीती चौसठ योगिनियां, वश बावन खेतल वीर कियां । जसु नाम न पड़े बीजलियां, भूत प्रेत न कर सके छल वलियां ||४|| जिण सिंध सवा लख दिस साधी, पंच पीर नदी जिन पुल बांधी । उपगार कियां कीरत लाधी, बरसात लियां गुरु सिद्ध वाधी ||५|| सुत मुगल कियो सरजीत बहू, पाये लागा नर नार सहू । जिण साधी विद्या वेश लहू, प्रतिबोधी श्रावक की कहू ॥६॥ बड नगरे ब्राह्मण द्वेष धरी, मृत गाय
SEJENEVENESES