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जैन-रवसार ( ख्याली लाल अणवट रंग लागो) छेद तणा प्रायश्चितना जी, छेद छए ए जान । वृहत्कल्प विवहार में जी, भाख्यो भगवंत ज्ञान ॥ सुज्ञानी लाल इणसं नित राचो । राचो राचो रे भविक, दिलदार इण सूं नित राचो ॥ सुज्ञा० १९ ॥ महा निषीथे भाखियो जी, जिन पूजा बिहुँ भेद । श्रावक द्रव्ये भाव सू जी, मुनिवर भाव उमेद ॥ सुज्ञा० २० || जीत कल्प वलि निसीथ छे जी, और दशा श्रुतस्कंध । दश पयन्ना जाणिये जी, चौसरण संथार प्रबंध ॥ सुज्ञा० २१ ॥ तंडुल वयाली चंदाविझया, गणविद्या अभिधान । देवविज्झया वीर थुवो जी, गच्छाचार निधान ॥ सुज्ञा० २२ ॥ ज्योतिष करण्ड महा पच्चक्खाण जी, चार सूत्र छे मूल । आवश्यक दशचै कालिक जी, उत्तरा ध्ययन अमूल ॥ सुज्ञा० २३ ॥ चारे अनुयोगे करी जी, रचना सूत्रे जान । तेह न्याय निक्षेप थी जी, अनुयोग द्वार प्रधान ॥ सुज्ञा० २४ ॥ द्रव्यानुयोग छए द्रव्य नी जी, चर्चा विधि विस्तार । चरण करन अनुयोग में जी, मुनि श्रावक आचार || सुज्ञा० २५ ॥ गणतानुयोग गणना करी जी, पृथ्वी निरी विमाण । वर्ग मूल धन मूल थी जी, जानो चतुर सुजान ॥ सुज्ञा० २६ ॥ | धर्म कथा अनुयोग में जी, धर्म कथा दृष्टान्त । ए चारों विस्तारिया जी, पैंतालीस सिद्धान्त ।। सुज्ञ० २७ ॥
(सांगानेर विराजे) सुन सुन गौतम वाणी, इम वीर वन्दे गुणखाणी रे । भवियां आगमसू मन लावो, मन कल्पित बात न गावो रे ॥ भ० २८ ॥ नंदी सूत्र चिर नन्दो, या पंच ज्ञान ने वंदो रे । ज्ञानना भेद वखाण्या, मति अट्ठावीसे आण्या रे ॥ भ० २९ ॥ श्रुत चवदे वीसां भेद ए, मिथ्यातम ने छेदे रे । अवधि छ । असंख्य प्रकारे, मन पर्यव दुय भेद धारे रे ॥ भ० ३० ॥ केवल एक प्रकासे, ए सब विधिनंदी भासे । एतो सहुआगमनी नंद, स्याद्वाद भंगनी बून्द रे ॥ भ० ३१ ॥ अंग उपांगनी टीका, कर्ता ने नमं निरभीकारे । प्रथम शीलांगाचारी, श्री अभयदेव बलिहारी रे ॥ भ० ३२ ॥ मलयगिरि गुरु स्वामी,
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