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स्तवन-विभाग
इत्यादिक ने सिर नामी रे । सामान्य विशेषे साखी रे || भ० ३३ || उत्सर्ग वचन छे केइ, इक मन से आराधो, मन वंछित सगला साधो रे ॥ भ० ३४ ॥ ( मंगल कमला कंद ए )
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निश्चय व्यवहार छे
भाखी, अपवाद वचन ने लेइ रे ।
पैंतालीस आगम तणी ए, हिव तप विधि सुणज्यो हित भणी ए । दुज पांचम एकादशी ए, ज्ञान तिथी तप थी कर्म जाय खसी ए ||३५|| शक्ति छते उपवास ए, आंबिल नीवी थी उल्हास ए । एकासण अथवा करे ए, एम पैंतालीस दिन आचार ए || ३६ || जाप करे दो हजार ए, देव वंदन पूजन सार ए । प्रति क्रमण करे दोनूं टंक ए, आगम सुणे अर्थ निसंक ए ||३७|| ऊजमणो हित चित्त करे ए, गुरु भक्ति चित्त सं आदरे ए । भक्ति करे साहमी तणी ए, जे पढ़े पढ़ावे ते भणी ए ॥ ३८ ॥ अन्न वस्त्र पुस्तक करे दान ए, तिण मनुष्य जनम परिमाण ए । ते पामें श्रुत ज्ञान ए, क्रम थी हे पद निवाण ए ॥३९॥
पढ़
कलश
शुभ नंद सर निधि चन्द्र वरसे, माघ सुदि पंचमि दिने । वर नयर बीकानेर सुन्दर, बृहत्खरतर गण घणे || गणधार कीर्ति सुरिंद पाठक, राम गणि ऋद्धि सार ए । इम करिय रतबना सुय महोदय, सदा जय जयकार ए ॥४०॥
पैंतालिस आगम का गुणना ( इग्यारे अंग )
जी सूत्राय
१ श्री आचारांग जी सूत्राय नमः | २ श्री सुयगडांग जी सूत्राय नमः | ३ श्री ठाणांग जी सूत्राय नमः । ४ श्री समवायांग जी सूत्राय नमः । ५ श्री भगवती जी सूत्राय नमः । ६ श्री ज्ञाता धर्म नमः | ७ श्री उपासगदशा जी सूत्राय नमः । ८ श्री अंत सूत्राय नमः । ९ श्री अणुत्तरो बबाइ जी सूत्राय नमः । १० व्याकरण जी सूत्राय नमः । ११ श्री विपाक जी सूत्राय नमः ।
गडदशा जी
श्री प्रश्न
* यह स्तवन १९५६ मे उपाध्याय रामलाल जी गणी ने बनाया है ।